मेरठ:-भारतीय संस्कृति और सभ्यता को मुस्लिमों से नहीं ऊंच-नीच करने वाले षड्यंत्रकारियों से खतरा।
Raju Gadre |
राजुद्दीन गादरे सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता ने भारतीयों में पनप रही द्वेषपूर्ण व्यवहार आपसी सौहार्द पर अफसोस जाहिर किया और अपने वक्तव्य में कहा कि देश की जनता को गुमराह कर देश की जीडीपी खत्म कर दी गई रोजगार खत्म कर दिये महंगाई बढ़ा दी शिक्षा से दूर कर पाखंडवाद अंधविश्वास बढ़ाया जा रहा है। षड्यंत्रकारियो की क्रोनोलोजी को समझें कि हिंदुत्व शब्द का सम्बन्ध हिन्दू धर्म या हिन्दुओं से नहीं है। लेकिन षड्यंत्रकारी बदमाशी करते हैं।
जैसे ही आप हिंदुत्व की राजनीति की पोल खोलना शुरू करते हैं यह लोग हल्ला मचाने लगते हैं
कि तुम्हें सारी बुराइयां हिन्दुओं में दिखाई देती हैं? तुममें दम है तो मुसलमानों के खिलाफ़ लिख कर दिखाओ !
जबकि यह शोर बिलकुल फर्ज़ी है। जो हिंदुत्व की राजनीति को समझ रहा है, दूसरों को उसके बारे में समझा रहा है, वह हिन्दुओं का विरोध बिलकुल नहीं कर रहा है ना ही वह यह कह रहा है कि हिन्दू खराब होते है और मुसलमान ईसाई सिक्ख बौद्ध अच्छे होते हैं!
हिंदुत्व एक राजनैतिक शब्द है !
हिंदुत्व की राजनीति का सम्बन्ध हिन्दुओं की भलाई या उनके विकास या उनकी रक्षा से बिलकुल नहीं है,बल्कि हिंदुत्व की राजनीति, हिन्दुओं का सर्वनाश करने वाली राजनीति है।
हिंदुत्व की राजनीति की शुरुआत हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने की थी।
1915 में हिन्दू महासभा बनी और 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बना। ध्यान दीजिये, इन दोनों संगठनों की स्थापना सवर्णों ने की थी। अंग्रेज़ी राज में तब शिक्षा/नौकरियों में अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग (दलितों और पिछड़ी जातियों) को भी अवसर मिलने लगे थे।
सोचो ज्योतिबा फुले सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख उस्मान शैखने पुणे में महिला शिक्षा की शुरुआत कर दी थी.
पुणे में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई.
अपनी स्थापना के समय आरएसएस के प्रथम सरसंघ चालक हेडगवार ने कहा था कि "शूद्रों और मलेच्छों की ओर से हिन्दू धर्म को मिलने वाली चुनौती की सामना करने के लिए हमने इस संगठन का गठन किया है !"
हिंदुत्व की राजनीति, असल में सवर्ण राजनीति (ब्राह्मणवाद) है!
बेवकूफ बना कर ओबीसी, दलितों और आदिवासियों को मुसलमानों का डर दिखा कर, सवर्णों ने अपने हितों की रक्षा करने के काम में लगाया हुआ है!
सब जानते है, अतीत में भारत में जो भी मेहनतकश जनता थी उसे शूद्र घोषित कर दिया गया था,
इसके अलावा राजा उसके पुरोहित उसके सैनिक दरबारी और व्यापारी मिलकर बन गए ऊंची जातियां यानी सवर्ण जातियां !
इन 'गैर शूद्र सवर्ण" जातियों ने खुद को शारीरिक श्रम से खुद को अलग कर लिया.
बड़े बड़े मन्दिर बना कर उनमें मेहनतकश जनता का चढ़ावा लेकर उसकी कमाई लूट लेना,
राजा द्वारा टैक्स के रूप में मेहनतकश जनता की कमाई छीन लेना, व्यापारियों द्वारा भारी मुनाफे के रूप में मेहनतकश जनता की कमाई लूट लेना,
इस तरह यह पुरोहित व्यापारी और राजा समुदाय, बिना श्रम किये अमीर बनते गए,
पूरी राजनैतिक शक्ति भी इन्ही तीन सवर्ण समुदायों के हाथ में इकट्ठी होती चली गई,
तो भारत का समाज ऐसा बन गया, जिसमें मेहनत करने वाली जनता नीच जात की बन गई, वह गरीब भी बन गई और उसके पास कोई राजनैतिक शक्ति भी नहीं बची!
लेकिन जब बीसवीं सदी आई और अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन शुरू हुआ...
तब ऐसा आभास होने लगा कि भारत में अब यह सब बदल जाएगा!
बाबा साहब आंबेडकर, भगत सिंह, मौलाना आज़ाद समेत हजारों नेता आज़ादी के बाद, बराबरी और न्याय का वादा कर रहे थे...
षड्यंत्रकारियो सवर्णों को लगा कि 'कहीं ऐसा ना हो कि अँगरेज़ चले जाएँ और यह न्याय और बराबरी आ जाय !'
इन्हें डर लगने लगा कि 'अगर ऐसा हो गया तो हजारों सालों से जो हम बिना मेहनत के अमीर और सत्तावान तथा दबंग बने बैठे हैं, हमारी वह हालत बदल जायेगी !'
फिर तो जो मेहनत करेगे, वहीं पैसे वाले बन जायेंगे,
कुछ षडयंत्रकारियों सवर्णों का हज़ारों सालों से जो वर्चस्व है, वह समाप्त हो जाएगा!
अपने आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक वर्चस्व को अपनी मुट्ठी में हमेशा के लिए रखने के लिए, इन षड्यंत्रकारियों सवर्णों ने हिंदुत्व की राजनीति की चाल खेली!
इन्होनें कहा 'बराबरी की बात करने वाले कम्युनिस्ट है, जो हमारे धर्म के दुश्मन है!'
जातिवाद को मिटाने की बात करने वाले हमारे धर्म के दुश्मन है,
षड्यंत्रकारियों ने बराबरी की मांग को दबाने के लिए धर्म का कार्ड खेला !
आरएसएस ने कहा 'हमारी लड़ाई अंग्रेजों से नहीं है, हमारे दुश्मन मुसलमान इसाई और कम्युनिस्ट हैं.' कुछ षडयंत्रकारियों ने कहा 'भारत की राजनीति का काम, यह बराबरी वगैरह की कम्युनिस्ट मांग मानना नहीं होना चाहिए,'
बल्कि भारत की राजनीति का लक्ष्य भारतीयों का पुनरुत्थान होना चाहिए, जिसमें पुराने गौरवशाली स्वर्ण हिन्दू काल की वापसी तथा हिन्दू गौरव की स्थापना होनी चाहिए!
जबकि दोनों ही बातें पूरी तरह झूठ थीं।
भारत का कोई गौरवशाली अतीत नहीं था।
भारत के अतीत में अछूतों शूद्रों ओबीसी एस सी एस टी का शोषण था औरतों की गुलामी थी, किसानों का शोषण था!
और भारत में कोई गौरवशाली हिन्दू स्वर्ण युग नहीं था.
दसवीं शताब्दी मुस्लिम के भारत में आने से पहले, भारत में कोई हिन्दू था ही नहीं !!
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी भाषा से हुई। उससे पहले हम जातियों के नाम से पहचाने जाते थे!
अंग्रेजों के जाने के बाद भी हमेशा सवर्णों के हाथ में भारत की दौलत और सत्ता रहे, इसके लिए ब्राह्मणों ने आरएसएस का गठन किया।
लेकिन सारे सवर्ण मिलकर भी भारत की सत्ता अपनी संख्या के बल पर अपनी मुट्ठी में नहीं रख सकते थे।
क्योंकि सवर्ण अल्पसंख्यक हैं!
अल्पसंख्यक होते हुए भी सत्ता और दौलत को अपनी मुट्ठी में रखने के लिए तिकड़म की ज़रूरत थी।
षड्यंत्रकारियो ने हिंदुत्व की राजनीति की तिकड़म लगाई!
जिन शूद्रों की मेहनत और संसाधनों पर कब्ज़ा बरकरार रखना था और जिनका आगे भी पहले की तरह शोषण करना था, उन्हें ही अपने पीछे लगा लिया !
षड्यंत्रकारियों ने कहा कि 'हम हिन्दुओं पर मुसलमानों ने बहुत अत्याचार किये हैं और मुगलों के अत्याचारों की फ़र्ज़ी और मनगढंत कहानियां फैलाईं!
भारत के ओबीसी एससी एसटी को अपने शोषण की समझ ना आ जाए, इसलिए उससे कहा 'तुम हिन्दू हो और तुम्हारा धर्म खतरे में है !'
इस तरह आरएसएस ने भारत में अपने सवर्ण वर्चस्व को दलितों और ओबीसी से मिलने वाली चुनौती से बचा लिया...
तथा इन्हें मुसलमानों का खतरा दिखा कर, उनसे लड़ने के काम पे लगा दिया। षड्यंत्रकारी लगातार हिन्दुओं को डराते रहते हैं। कहते हैं 'हमारा धर्म खतरे में है और इसे मुसलमानों ईसाईयों सिक्खों बौद्धिष्टो और कम्युनिस्टों से खतरा है'
लेकिन असलियत में तो कोई खतरा है ही नहीं ! समता समानता न्याय बंधुता और स्वतंत्रता प्रेमी मूल निवासी भारत का कोई मुसलमान आतंकवादी नहीं है।
भारत में सारी आतंकवादी घटनाएं आरएसएस जिसके हैंड आफिस पर देश का झंडा नहीं लहराया उसने करवाई तथा कई घटनाओं में सरकारी एजेंसियों को भी षड्यंत्र में शामिल किया।
मालेगांव ब्लास्ट, मक्का मस्जिद में बम विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस में ब्लास्ट, एटीएस चीफ करकरे की हत्या आरएसएस और इसके सहयोगी संगठनों का काम था! इस सब का मकसद यही था कि 'भारत का हिन्दू डरा रहे और बीजेपी को वोट देता रहे..ताकि भारत की सत्ता पर इन कुछ मनुवादी सवर्णों का कब्ज़ा रहे। सत्ता पर कब्ज़ा मतलब सीआरपीएफ, फोर्स,अदालत, पुलिस सब पर कब्ज़ा!
इसके बल पर सारे जंगल खदानें कम्पनियां हवाई अड्डों एयरपोर्टों समुन्दरों पर अपना कब्ज़ा !
यानी पूरे देश की दौलत पर कब्ज़ा ! और विरोध करने वाले लोगों को जेल में डालना, मूलनिवासियों को अर्बन नक्सली कहना,आतंकवादी कहना। ध्यान से देखेंगे तो आपको साफ़ साफ़ दिखाई दे जाएगा कि भाजपा सत्ता में भले ही हिन्दुओं का नाम लेकर आई लेकिन उसने हिन्दुओं का सबका साथ सबका विकास नहीं सबका सर्वनाश ही किया!
राजुद्दीन गादरे ने देशवासियों से सवाल किया कि लाकडाउन में जो मजदूर सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर किये गए, क्या वह सभी मुस्लिम ही थे?
मोदी सरकार ने मजदूरों के सभी अधिकार खत्म कर दिए हैं; क्या मजदूर मुस्लिम ही हैं?
क्या किसान मुस्लिम ही हैं? जो आन्दोलन करते हुए मारे गये ?
जिन आदिवासियों मूलनिवासियों को पूंजीपतियों के लिए मारा जा रहा है, क्या वे मुसलमान हैं?
हिन्दुओं का नाम लेकर सत्ता अपने हाथ में लेकर, बड़े पूंजीपतियों को देश की दौलत सौंपने का काम भाजपा खुलेआम कर रही है? बहुत सारे सवर्ण भारत के मूल निवासियों के खून पसीने की कमाई का धन लोन लेकर विदेशों में लेकर भागने में कामयाब हो गए क्या वे मुस्लिम थे?
पाखंडवादी अंधविश्वासी भाजपा बार बार सत्ता में इसीलिए आती है, क्योंकि जिन वर्गों को यह लूट रही है, उन्हें मुसलमानों का डर दिखा कर बेवकूफ बनाये हुए है!
भाजपा की राजनीति की काट यही है कि भारत की जनता, अपने आर्थिक हित पर ध्यान दे फिजूल खर्ची बंद करें।
जनता को हम जैसे लोग जागरूक करें कोई अलग से नहीं आएगा। जनता को आरएसएस के इस पूरे षड्यंत्र की जानकारी दी जाय।
राजुद्दीन गादरे पूछते हैं कि इसमें बहुत सारे लोगों की ज़रूरत है जो समय दे सकें क्या आप हमारे साथ देश और समाज को बचाने में सहायक है?