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भारत और बांग्लादेश वर्ष 1971 से लंबी दूरी तय कर चुके हैं




भारत और बांग्लादेश वर्ष 1971 से लंबी दूरी तय कर चुके हैं। दोनों देशों के संबंध शेख मुजीबुर्रहमान के समय में अत्यंत मधुर थे। लेकिन जिया-उर-रहमान और उनकी पत्नी बेगम जिया के कार्यकाल में संबंध खराब हुए। हालांकि अब मुजीब की बेटी शेख हसीना के शासनकाल में संबंध फिर से प्रगाढ़ हो रहे हैं। इस तरह दोनों देशों के बीच संबंधों ने एक लंबी दूरी तय की है, जिनमें कई उतार-चढ़ाव आए हैं। अब दोनों देशों के संबंध बेहतर हो रहे हैं, इसलिए यह सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए कि दोनों देेशों के संबंधों में यह बेहतरी लगातार जारी रहे। विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल के महीनों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित भारत की आकांक्षाओं पर कई बार जोर दे चुके हैं। बांग्लादेश इसी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित है, जिसे निश्चित रूप से प्रमुखता में सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। इसी संदर्भ में हमें हाल की घटनाओं के नतीजों को देखना चाहिए, जो बांग्लादेश के दो वरिष्ठ मंत्रियों के हमारे देश की यात्रा रद्द करने का नतीजा हैं। पिछले कई दशकों से हमारे सीमा विवाद के मुद्दों का इतिहास हर कोई जानता है और अब समुद्री सीमा के सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान के बारे में ज्यादातर भारतीयों को नहीं पता है। दोनों देशों के बीच कई वर्षों से न्यू मूर द्वीप को लेकर विवाद रहा है। यह द्वीप उच्च ज्वार में पानी में डूब गया था, लेकिन पानी उतरने पर काफी स्पष्टता से दिखाई देने लगा। बांग्लादेश ने इस द्वीप पर अपना दावा किया और इससे अपनी समुद्री सीमा और विशेष आर्थिक क्षेत्र निर्धारित किया। वहीं भारत ने कहा कि वह उसके क्षेत्र में आता है। दोनों के दावों के पीछे यह आकलन था कि न्यू मूर के आसपास समुद्र में तेल एïवं गैस के भंडार हैं। एक समय भारत ने इस द्वीप के आसपास अपने नौसैनिक और एक जहाज तैनात कर दिया था। दोनों देशों के बीच काफी कड़वाहट और कटुता जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। यह मसला 2014 में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के जरिये सुलझा। इसमें भारत में न्यू मूर द्वीप और उस करीब 80 फीसदी पानी पर अपना दावा छोड़ दिया, जिसका उसने दावा किया था। इस तरह दोनों पड़ोसी देशों के बीच अच्छे संबंधों के बीच आने वाली एक बाधा दूर हो गई, इसलिए अब दोनों देशों के बीच भू-सीमा और समुद्री सीमा से जुड़े मुद्दों का समाधान हो गया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारे हितों के लिए बांग्लादेश महत्त्वपूर्ण क्यों है? बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी में अंडमान द्वीप समूह के उत्तर में करीब 600 मील दूरी पर स्थित है, जहां चटगांव और कॉक्स बाजार जैसे प्रमुख बंदरगाह हैं। ऐसे में बांग्लादेश हमारी पूर्व समुद्री सीमा पर एक महत्त्वपूर्ण तटीय देश है। बांग्लादेश और म्यांमार के बंदरगाह बुनियादी ढांचा विकास के रूप में चीन के साथ सुरक्षा संबंध हैं। इसमें दोनों को सैन्य एवं नौसैन्य साजोसामान की आपूर्ति भी शामिल की जानी चाहिए, जिसमें दो सबमरीन प्रमुख हैं। चीन के जंगी जहाज बहुुधा चटगांव आते-जाते रहे हैं। अगर यह संबंध आगे और मजबूत होता है तो यह भारत के लिए नुकसानदेह होगा। 









बांग्लादेश चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का समर्थक है। चीन लंबे और दुरुह मलक्का जलडमरूमध्य के रास्ते से बचने के लिए अपने युन्नान प्रांत को हिंद महासागर से जोडऩा चाहता है। उसे इसके लिए बांग्लादेश के चटगांव तक पहुंचने की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो हमें चीन की नौसेना और जहाजों की बंगाल की खाड़ी और अंडमान द्वीपसमूह के आसपास मौजूदगी बढ़ी हुई देखने को मिलेगी। भारत और बांग्लादेश के बीच मौजूदा सकारात्मक माहौल ने सभी संभावित नकारात्मक कारकों को पीछे धकेल दिया है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए, जिससे स्थिति बिल्कुल विपरीत हो जाए। नौसेना प्रमुख ने इस महीने की शुरुआत में खुलासा किया था कि चीनी अनुसंधान जहाज हमारे विशेष आर्थिक क्षेत्र में घुस आए और उन्हें जाने के लिए कहना पड़ा। ऐसी घुसपैठ पहली बार नहीं हुई है। ये जहाज समुद्र के तल की संभावनाओं और सोनार स्थितियों की जांच करते हैं, जो सबमरीन के अनुकूलतम परिचालन में मददगार हैं और स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य हैं। इसके अलावा अन्य के समुद्री क्षेत्र में विदेशी जंगी जहाजों की तैनाती के लिए पहले से मंजूरी की जरूरत होती है। इसका अपवाद केवल 'इनोसेंट पैसिज' है। इनोसेंट पैसिज अंतरराष्ट्रीय कानून की शब्दावली है जिसमें अगर कोई जहाज दूसरे देश की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है तो वह उस देश के क्षेत्र से गुजर सकता है। चीनियों ने बार-बार इस जरूरत की अनदेखी की है। उन्होंने दक्षिणी चीनी सागर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं नियमों का उल्लंघन किया है, जहां फिलिपींस और वियतनाम जैसे छोटे देश बलपूर्वक उनका विरोध नहीं कर पाते हैं। उन्हें हमारे हित क्षेत्र में ऐसा करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती। बंगाल की खाड़ी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का एक अहम हिस्सा है, जिसकी हमारी रणनीतिक एवं सुरक्षा प्राथमिकताओं में ऊंचा स्थान है। ऐसी अनधिकृत घुसपैठ को छोड़ भी दें तो सोमालिया के समुद्री डाकुओं का खतरा बढऩे के बाद चीन की नौसेना की मौजूदगी हिंद महासागर में 2008 के बाद तेजी से बढ़ी है। उनका बेस पाकिस्तान (ग्वादर) और जिबूती (अफ्रीका) में है। वे दोनों जगह सेना तैनात कर सकते हैं। वे तेल भरने वाले जहाज समेत चार से पांच जहाज अमूमन हिंद महासागर क्षेत्र में रखते हैं। इसके अलावा चीन सेशल्स जैसे द्वीपीय क्षेत्रों में मौजूदगी कायम करने की कोशिश कर रहा है। उसने श्रीलंका (हंबनटोटा और कोलंबो) और म्यांमार में बंदरगाह के विकास में अहम योगदान दिया है। इसलिए भारत के हितों के लिए बांग्लादेश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध अहम हैं। अच्छी बात यह है कि बांग्लादेश प्रत्येक आर्थिक और सामाजिक पैमाने पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। इनमें से कई में वह भारत से भी आगे है। दोनों देशों के बीच असहमति के क्षेत्र भी बहुत कम हैं। इसी पृष्ठभूमि में हमें हाल के घटनाक्रम को देखना चाहिए। पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश को हिंदू अल्पसंख्यकों को प्रताडि़त करने वाला कहने से बांग्लादेश में अच्छा संदेश नहीं गया है। इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि उसने अपना मौजूदा रुख ही दोहराया है। अच्छी बात यह है कि शेख हसीना ने खुद कोई टिप्पणी नहीं की। यह बताता है कि वह भारत के साथ संबंधों को कितनी अहमियत देती हैं। हालांकि बड़े मंत्रियों के दौरों को रद्द कर वांछित 'संदेश' दे दिया गया। उम्मीद है कि इनसे बयानबाजी को कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित और भारत के लिए महत्त्वपूर्ण दर्जनों देशों में बांग्लादेश को सबसे शीर्ष पर रखा जाना चाहिए। भारत के नजदीकी पड़ोसी देशों में बांग्लादेश ही एकमात्र ऐसा देश है, जो 'दोस्त' कहलाने लायक है। अगर इस दर्जे में बदलाव हुआ तो यह हमारे हितों के लिए मददगार नहीं होगा। 



(लेखक पूर्वी नौसेना कमान के पूर्व कमांडर इन चीफ हैं। वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रह चुके हैं।)





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