देश में नागरिता संशोशन एक्ट और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन को लेकर मचे बवाल के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम के दौरान खुलकर बातचीत की और वहीं असम का उदाहरण रखा। एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने कहा कि एनआरसी के बारे में असम से सीखना चाहिए। इससे किसी के धर्म का कोई लेना देना नहीं है। ये घुसपैठियों की पहचान करेगा और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। एनआरसी के तहत इस देश का नागरिक नहीं आएगा। वहीं उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम कोई भी कानूनी जांच करेगा और कहा कि सरकार इसके कार्यान्वयन पर चट्टान की तरह दृढ़ है। नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर पर जो सरकार के एजेंडे में भी रहा है, वहीं होगा। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। शाह ने कहा कि किसी भी भारतीय नागरिक को नागरिकता अधिनियम या एनआरसी से डरने की जरूरत नहीं है। इसलिए, यदि भारत सरकार 1955 के नागरिकता अधिनियम के तहत नागरिकता प्रदान कर सकती है, तो जो भी उन्हें उपयुक्त लगता है, उसे संशोधन की आवश्यकता क्यों है, जब तक कि यह असम में एनआरसी से छूटे हुए हिंदुओं को आश्वस्त करने के लिए नहीं था? या इसलिए कि यह बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल है? भारत सरकार ने भी नागरिकता के लिए अनुरोधों को देने या मना करने का अधिकार दिया है। एक बार आवश्यकताएं पूरी होने के बाद सरकारों को नागरिकता देने के संप्रभु अधिकार पर किसी को संदेह नहीं है। 1955 का नागरिकता अधिनियम या उस मामले के लिए कोई अन्य कानून मोदी सरकार को तीनों पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को देता है जो बाहर से आए हैं।