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निवेशकों के 500000 करोड रुपए डूबे


बेंचमार्क सूचकांक भले ही नई ऊंचाई को छू गए हैं, लेकिन 1,300 शेयरों में इस साल अब तक 35 फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज हुई है और इस तरह से इस अवधि में निवेशकों के 5 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। मुख्य सूचकांकों सेंसेक्स और निफ्टी में इस साल अब तक क्रमश: 15 फीसदी व 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। जिन कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में भारी गिरावट दर्ज हुई है उनमें येस बैंक, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनैंस, ज़ी एंटरटेनमेंट, वोडाफोन आइडिया और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स शामिल हैं।बाजार के विशेषज्ञों के मुताबिक, बाजार के कमजोर हालात को देखते हुए बिकवाली काफी तेज रही है, यहां तक कि कंपनी संचालन से जुड़े मामूली संकेत या कर्ज चुकाने में अक्षमता पर भी। एक विश्लेषक ने कहा, ज्यादा कर्ज वाली कंपनियों पर चोट पड़ रही है। साथ ही कंपनी प्रशासन से जुड़ी चिंता को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, यहां तक कि लार्जकैप कंपनियां भी बिकवाली के दायरे में आ रही हैं। पूंजी आवंटन की नीतियां और अल्पांश शेयरधारकों के बजाय प्रवर्तक के हित में लिए गए फैसले से भी सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) के शेयर पर भारी चोट पड़ी है।बाजार के प्रतिभागियों ने कहा, सार्वजनिक उपक्रमों में नकदी का स्तर निवेशकों के आकर्षण का सबसे बड़ा कारण रहा है, लेकिन कमजोर लाभ के बावजूद ज्यादा लाभांश दिए जाने के कारण नकदी तेजी से घट रही है। विश्लेषकों ने कहा कि कई सार्वजनिक उपक्रमों ने लाभांश भुगतान के लिए अपनी नकदी या संचयी आय का इस्तेमाल किया, जो सरकारी खजाने में इजाफे के लिए जरूरी था। कुछ बड़ी पीएसयू को जिंस व पूंजीगत खर्च के प्रतिकूल चक्र से झटका लगा। सरकार के लगातार हस्तक्षेप से भी निवेशक पीएसयू शेयर बेच रहे हैं। कुल मिलाकर आर्थिक मंदी ने ज्यादातर क्षेत्रों पर नकारात्मक असर डाला है और सबसे कमजोर शेयरों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है।एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध प्रमुख (खुदरा) दीपक जसानी ने कहा, वैश्विक मंदी, कमजोर मांग और कीमत के कारण ज्यादातर धातु शेयरों को झटका लगा। दूरसंचार कंपनियों को उद्योग के ज्यादा प्रतिस्पर्धी होने और नियामकीय शुल्क ज्यादा रहने का खामियाजा भुगतना पड़ा, वहीं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां नकदी की अनुपलब्धता और रियल एस्टेट व अन्य जगहों पर परिसंपत्ति गुणवत्ता की समस्या से प्रभावित हुईं। साथ ही सुरक्षा पर ज्यादा जोर रहा और बड़े संस्थागत निवेशक मसलन म्युचुअल फंड अब मिड व स्मॉलकैप कंपनियों में निवेश पर लगाम कस रहे हैं। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के खुदरा शोध प्रमुख सिद्धार्थ खेमका ने कहा, निवेशकों ने अच्छे प्रबंधन, स्थायी कारोबारी मॉडल और बढ़त के शानदार परिदृश्य वाली कंपनियों में अपनी रकम लगाने को तरजीह दी।बाजार के प्रतिभागियों ने कहा, आने वाले समय में निवेशकों को सतर्कता के साथ आगे बढऩा चाहिए और पिटे हुए शेयरों में अच्छी गुणवत्ता वाली कंपनियों पर नजर डालनी चाहिए। स्वतंत्र विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा, इनमें से कुछ कंपनियां कभी भी नहीं सुधर पाएंगी। हालांकि कुछ अच्छी कंपनियों के शेयर भी हैं जो व्यापक बाजार में कमजोर सेंटिमेंट के बीच टूट गए।



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