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सरकार का काम लोगों के दुख दर्द को बांटना होता है उसको बढ़ाना नहीं है

सों से अपने गांव कस्बों से दूर रह रहे लोग सारे कामकाज छोड़कर जमीनों की मिल्कियत और रिहाइश के प्रमाण लेने के लिए अपने गांव आएंगे। इनमें से कुछ यह भी पाएंगे कि पटवारी लेखपाल से सांठगांठ करके लोगों ने जमीनों की मिल्कियत बदल दी है। बहुत बड़े पैमाने पर संपत्ति के विवाद सामने आएंगे। खून खच्चर भी होगा। 


याद रखिए कि आधार कार्ड और पैन कार्ड दिखाकर आप अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर सकते। जो लोग यह समझ रहे हैं कि एनआरसी के तहत सरकारी कर्मचारी घर-घर आकर कागज देखेंगे, उन  नादानों को यह मालूम होना चाहिए कि एनआरसी के तहत नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं।


इसके अलावा जिसकी नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वही रहना पड़े। करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों का कामकाज चौपट हो जाएगा। 


एक रिपोर्ट के मुताबिक आसाम में सरकार में एनआरसी को लागू करने में 16 सौ करोड़ रुपए खर्च किया है जबकि अपनी नागरिकता को प्रमाणित करने में लोगों ने लगभग 8000 करोड रुपए खर्च किए हैं। पूरे देश में यह राशि कितनी होगी। सोचिए इस अनुत्पादक खर्च का इकॉनमी पर क्या असर पड़ेगा। सनक में लाई गई नोटबंदी और जल्दबाजी में लाए गए जीएसटी ने पहले ही हमारी इकोनॉमी को तबाह कर दिया है। 


इक्का-दुक्का घुसपैठियों को छोड़कर ज्यादातर जेनुइन लोग ही परेशान होंगे। श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आते जाते रहे हैं, उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करने में दांतो से पसीना आ जाएगा। जाहिर है, इनमें से ज्यादातर हिंदू ही होंगे। लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले आदिवासी समुदायों को तो सबसे ज्यादा दिक्कत आने वाली है। वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, नागरिकता कैसे साबित करेंगे। दूरदराज के पहाड़ी और वनक्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी प्रभावित होंगे। 


लेकिन इसमें कुछ लोगों की पौ बारह भी हो जाएगी। प्रक्रिया को फैसिलिटेट करने के लिए बड़े पैमाने पर दलाल सामने आएंगे।  जिसके पास पैसा है, वे व्यक्ति जेनुइन नागरिक न होने के बावजूद फर्जी कागजात बनवा लेंगे। नागरिकता सिद्ध करने में सबसे ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सबसे ज्यादा वंचित है।


और हां जो लोग अपनी नागरिकता प्रमाणित नहीं कर पाएंगे उनके लिए देश में डिटेंशन सेंटर बनेंगे। इन डिटेंशन सेंटर्स को बनाने और चलाने में देश के अरबों खरबों रुपए खर्च होंगे।


कुल मिलाकर देश का सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य अस्त-व्यस्त हो जाएगा। गुजरात में नर्मदा किनारे सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर खड़े पटेल अपने सपनों के भारत को बर्बाद होते देखते रहेंगे।


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