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सेंगर जिंदा रहा तो मुझे मार देगा ,उन्नाव रेप पीड़िता







नई दिल्ली: उन्नाव बलात्कार पीड़िता का घर फिलहाल किसी बंदी गृह की भांति लग रहा है. आठ सीआरपीएफ जवानों के कड़े पहरे के बीच सविता (बदला हुआ नाम) अपनी चारपाई पर बैठी शून्य में ताकती रहती हैं. जुलाई महीने में दिल्ली के एम्स में भर्ती हुईं सविता बारह दिन पहले ही लौटी हैं. धुमैले (ग्रे) रंग का सूट पहने बैठीं सविता की जिंदगी को पिछले दो सालों के घटनाक्रम ने जैसे रंगहीन ही बना दिया है. इसी साल जुलाई महीने में हुए एक भयंकर सड़क हादसे में उन्होंने अपनी मौसी और चाची को खो दिया था. उस वक्त कार में वो चार लोग थे. उसी सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हुए उनके वकील अभी भी अस्पताल में हैं और अस्पताल में भर्ती उनके वकील को लेकर पिछले दिनों खबर आई थी कि वो अब सिर्फ बेबसी पे रो पाते हैं.














सविता के बिना देख-रेख के छोटे-छोटे बाल चेहरे को और उदास बना रहे हैं. पास में बैठा छोटे भाई की प्यारी हरकतें  भी उसके चेहरे पर मुस्कराहट नहीं ला पा रही है. हालांकि वो बहन को हंसाने की हर संभव कोशिश करता रहा.


काफी देर तक चुप रहने के बाद वो आखिरकार कुलदीप सेंगर की सजा की बात पर बेबस लेकिन तीखी आवाज में बोलती हैं, 'अगर उसको फांसी नहीं होती है तो मेरा जीवन बेकार है. मेरे घर के मरे तीन सदस्यों की तेरहवीं भी नहीं की है हमने. हमारे घर के चार आदमी खत्म कर दिए कुलदीप सेंगर ने. अगर वो जिंदा रहता है तो मुझे भी मार देगा। इतना बोलते-बोलते उनके आंसू आंखों की कोरों तक आ जाते हैं. उनकी बड़ी बहन आगे जोड़ती हैं, 'ऐसा तो फिल्मों में ही होते देखा है जब एक केस के लिए पूरे परिवार को ट्रक से टक्कर मरवाकर खत्म कर दिया जाता है.'


कोर्ट की तीखी टिप्पणी- 'सीबीआई का रवैया पितृसत्तात्मक रहा'


गौरतलब है कि 2017 से शुरू हुए उन्नाव रेप केस में भाजपा के निष्काषित विधायक कुलदीप सेंगर को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने दोषी पाया है. साथ ही कोर्ट अपने फैसले में इस केस की जांच कर रही सीबीआई पर तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट का कहना है कि सीबीआई का जांच करने का तरीका पितृसत्तात्मक और संवेदनहीन रहा है. जांच एजेंसी ने एक भी महिला अधिकारी को टीम में शामिल नहीं किया और बार-बार पीड़िता को दफ्तर आने के लिए समन भेजा. साथ ही कोर्ट ने फटकार लगाई कि चार्जशीट फाइल करने में देरी की गई जिससे ट्रायल जल्दी खत्म नहीं हो सका.


देश के सबसे हाई प्रोफाइल केसों में से एक इस केस में पहली मौत सविता के पिता की हुई थी. सविता की मां दिप्रिंट को बताती हैं, 'जब उनको इस बलात्कार की बात पता चली तो वो गुस्से में कुलदीप सेंगर को ढूंढते हुए उनके घर गए थे. वहां सेंगर के आदमियों ने पानी डाल- डालकर उन्हें पीटा था. उन्हें इतना पीटा कि पुलिस थाने में उनकी मौत हो गई.'


बता दें कि कोर्ट ने इस केस में कुलदीप सेंगर की मुख्य सहयोगी शशि सिंह को संदेह का लाभ मिला और छोड़ दिया गया है. सविता, शशि सिंह को अपने लिए खतरा बताती हैं, 'उसी ने मुझे नौकरी का झांसा दिया था और सेंगर के पास ले गई थी. कोर्ट को क्या लगता है कि वो एक साल जेल में रहेगी और बाहर आकर हम लोगों को छोड़ देगी? शशि का बड़ा बेटा, जब हम पैरवी के लिए जाते थे तो सबके सामने धमकी देता था- तुम लोगों को उल्टा लटका दूंगा. शशि के छोटे बेटे शुभम ने भी मेरा बलात्कार किया.'


 

'वो 9 दिन मेरा गैंग रेप करते रहे, मेरे शरीर से बदबू उठने लगी थी'


वो आगे जोड़ती हैं, '7 जुलाई 2017 को सेंगर ने मेरे साथ बलात्कार किया. उसके ठीक चार दिन बाद 11 तारीख को मैं घर से बाहर नलके से पानी भरने गई थी. वहां खड़ी गाड़ी ने अचानक मुझे पकड़ लिया और मेरे हाथ-पैर पकड़ कर अंदर खींच लिया. मैं नरेश, शुभम और बृजेश नाम सुन पा रही थी. यहां से वो लोग मुझे उन्नाव लेकर गए. वहां जाकर ये आदमी दारू पीते और मेरे साथ बलात्कार करते.'


'ये लोग अपने दोस्तों को बुलाते. फोन करके कहते, 'जल्दी आजा. एक लड़की लाया हूं.' जब एक आदमी बलात्कार करता तो बाकी लोग दारू पी रहे होते. जिन कमरों में मेरा बलात्कार किया गया उन कमरों में कोई खिड़की नहीं होती थी कि मैं भाग सकूं. ये आदमी सारा दिन फोन अपने हाथ में ही रखते थे. अगर फोन हाथ लगता तो मैं अपने परिवार को फोन करती. नौ दिन तक मुझे खाना तो दिया गया लेकिन मैं न तो नहा सकी और ना ही मेरे कपड़े ही बदले. मेरे अंदर से बदबू भी आने लगी थी लेकिन फिर भी वो मुझे घुमाते रहे वो मेरा गैंग रेप करते रहे.'


आखिरी दिन को याद करते हुए सविता बताती हैं, 'मैं उनकी बातों से अंदाजा लगाने की कोशिश करती थी कि मुझे कहां ले जाएंगे. आखिरी में मुझे किसी कच्चे घर में छोड़कर भाग गए. उस घर में मौजूद एक औरत और बच्चे ने बताया कि मुझे किसी बृजेश यादव के हाथों 60,000 रुपये में बेच दिया गया है. उसके बाद पुलिस वहां(औरेयां जिला) पहुंच गई और मुझे बचा लिया.' गौरतलब है कि जब सविता की मां जब गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराने पहुंचीं तो पुलिस ने कहा था कि वो भाग गई होगी. नौ दिन तक उनकी मां पुलिस थाने के चक्कर काटती रहीं. आखिर में पुलिस को खोजबीन शुरू करनी पड़ी.उन्नाव के स्कूल में उनकी छोटी बहन को एक लड़के ने ये कहते हुए चिढ़ाया कि वो बलात्कार पीड़िता की बहन है. इस बात का चुटकुला बना और दूसरे बच्चे हंसे. सविता की मां गांव वालों के दुर्व्यवहार को लेकर कहती हैं, 'गांव वालों की तो छोड़ो, हमारे खुद के परिवार वालों की जुबान नहीं खुली. यहां तक की पुलिस सुरक्षा में दिए गए जवान भी सेंगर के लिए ही काम कर रहे थे. शुरुआती दिनों में हमारी बातें लीक हुईं तो हमने भीतर के कमरों में चुपके-चुपके बात करना शुरू कर दिया.'




यह भी पढ़ें: ग्राम प्रधान से बाहुबली विधायक तक का कुलदीप सिंह सेंगर का सफर, बलात्कार के आरोप ने बदल दिए सितारे


 



कार हादसा इस मामले का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ. देशभर में इस पूरे मामले को लेकर लोगों में गुस्सा भरा और आक्रोश फैला. यहां तक कि सत्ताधारी पार्टी को भी कुलदीप सेंगर से किनारा करना पड़ा. सविता उस हादसे के बाद अस्पताल के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, 'उस दिन हम अपने चाचा से मिलने जा रहे थे. रायबरेली के पास सड़क खाली ही थी. अचानक से एक ट्रक दिखा. हम कुछ सोच पाते उससे पहले ही ये सब हो गया. जब मुझे अस्पताल में होश आया तब मुझे खयाल आते थे कि मैं जिंदा ही ना रहूं.'


'तुम वही लड़की हो ना?'


उन्नाव में हुए इस बलात्कार के बाद सविता अपने चाचा के घर रहने दिल्ली आ गई थीं. लेकिन 'तुम वही लड़की हो ना' की लाइन ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. दिप्रिंट जब उनसे मिलने पहुंचा तो उनके आसपास के लोगों ने यही पूछा- वही लड़की जिसके साथ…


सविता कहती हैं, ये लाइन ऐसा लगता है जैसे मेरी खाल से चिपक गई है. मैं बालकनी में खड़े होकर दुनिया देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही हूं. मेरे लिए ये जिंदगी एक कैदखाने जैसी ही है.'


लेकिन हिम्मत ना हारते हुए भी वो कहती हैं कि सेंगर को फांसी हो जाए और मेरे चाचा को जमानत मिले तो कम से कम हमारी ठहरी हुई ज़िंदगी थोड़ी चले. दिल्ली महिला आयोग की स्वाति मालिवाल का खास तौर पर जिक्र करते हुए सविता का परिवार कहता है, 'अगर वो उनकी मदद नहीं करतीं, मीडिया मदद नहीं करता तो हो सकता है कि उनके पास मरने के अलावा कोई रास्ता ना बचता.'









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