सेंसेक्स भले ही उच्च स्तर 41000 के पार पहुंच गया हो लेकिन पिछले एक दशक में शेरों का नॉमिनल रिटर्न नौकरी की सालाना चक्रवृद्धि दर के हिसाब से मिला
बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक भले ही सर्वकालिक उच्च स्तर 41,000 के पार पहुंच गया हो लेकिन पिछले एक दशक में शेयरों का नॉमिनल रिटर्न 9 फीसदी की सालाना चक्रवृद्घि दर (सीएजीआर) के हिसाब से मिला है। मिड और स्मॉल कैप सूचकांकों का रिटर्र्न इस दौरान सेंसेक्स से भी कम रहा है। बिड़ला सन लाइफ म्युचुअल फंड के मुख्य कार्याधिकारी ए बालासुब्रमणयन ने कहा, 'शेयर का रिटर्न व्यापक तौर पर नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और कंपनियों की आय में वृद्घि से जुड़ा होता है। 1990 के दशक की शुरुआत और पिछले दशक में इसमें खासी तेजी देखी जा रही थी। लेकिन धीरे-धीरे इसमें नरमी आने लगी। इसके परिणामस्वरूप शेयर में निवेश पर रिटर्न भी कम हो गया।' उनके अनुसार मुद्रास्फीति के निचले स्तर पर बने रहने से ब्याज दरें भी कम होनी चाहिए। हालांकि इसमें देरी हुई और पूरी तरह से इसे संतुलित नहीं किया गया, जिसका असर कंपनियों की संभावित आय वृद्घि पर पड़ा और रिटर्न भी कम मिला।अन्य बचत और निवेश साधनों में रिटर्न कम रहा है। उदाहरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक का एक साल की सावधि जमा पर अभी 6.25 फीसदी ब्याज मिल रहा है। हालांकि 2011 में रिटर्न 9.3 फीसदी के उच्च स्तर तक और 2013 में 9 फीसदी तक पहुंच गया था लेकिन 2015 के बाद से इसमें लगातार कमी आ रही है। मिरे ऐसेट मैनेजमेंट में फिक्स्ड इनकम प्रमुख महेंद्र जाजू ने कहा, 'भारत वैश्विक बाजारों से काफी हद तक जुड़ा हुआ है, खास तौर पर विदेशी निवेशकों द्वारा शेयर और बॉन्ड बाजार में निवेश के मामले में। ऐसे में ब्याज दरें वैश्विक बाजारों के अनुरूप होती हैं।' उन्होंने कहा कि आने वाले समय में ब्याज दरों में और कमी आ सकती है।दूसरी ओर सोने पर रिटर्न सेंसेक्स की तरह ही 8.7 फीसदी सीएजीआर रहा। हालांकि रुपये में नरमी की वजह से सोने पर रिटर्न बढ़ा है। दिसंबर 2009 में डॉलर के मुकाबले रुपया 46.5 पर था जो अब प्रति डॉलर 71.2 रुपये पर आ गया है। पिछले दकश में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने में रिटर्न महज 3.1 फीसदी सीएजीआर रहा। रिटर्न में अगर मुद्रास्फीति को समायोजित कर दें तो वास्तविक रिटर्न और भी कम रहा है। दशक की पहली छमाही में मुद्रास्फीति सालाना दो अंक में बढ़ी थी, जिससे निवेशकों का वास्तविक रिटर्न घटा था। सावधि जमा कभी मुद्रास्फीति को मात नहीं दे पाई और शेयर तथा सोने पर वास्तविक रिटर्न उस दौरान 2 से 3 फीसदी रहा। दूसरी ओर उससे पिछले दशक (2000-2009) में शेयर और सोने पर नॉमिनल रिटर्न दो अंक में रहा जबकि मुद्रास्फीति 5.5 फीसदी रही थी। कोटक म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक निलेश शाह ने पिछले दशक में कम रिटर्न के पीछे दूसरा कारण बताया। उन्होंने कहा, 'रिटर्न कम रहने की मुख्य वजह अर्थव्यवस्था में नरमी रही, जिसकी वजह से कई लॉर्ज कैप्स की रेटिंग घटानी पड़ी। हालांकि इसके बावजूद भारत प्रतिस्पद्र्घी बाजारों में दूसरा सबसे अच्छा इक्विटी बाजार रहा है।' विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पीपीएफ, किसान विकास पत्र जैसी लघु बचत योजनाओं पर ब्याज घटता है तो बैंकोंं के ब्याज दरों में आगे और कमी आ सकती है। एक डेट फंड मैनेजर ने कहा, 'बैंकों की सावधि जमा दरों में ज्यादा कमी इसलिए नहीं आई है क्योंकि बैंकरों को डर है कि दरें घटाने से निवेशक सावधि जमा से पैसा निकलकर लघु बचत योजनाओं में लगा सकते हैं।'