वाहन क्षेत्र में गिरावट के बावजूद चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से सितंबर अवधि के दौरान एल्युमीनियम कबाड़ आयात में 6.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस अवधि में देश के वाहन क्षेत्र के उत्पादन में 13 प्रतिशत की गिरावट आई है। भारतीय एल्युमीनियम संघ (एएआई) ने सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के आंकड़ों का हवाला देते हुए वित्त मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है।उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि ऑटो क्षेत्र के लिए आयात की आड़ में बिजली पारेषण और बर्तन जैसे अन्य क्षेत्रों में कबाड़ का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन ऐसे क्षेत्रों में कबाड़ का इस्तेमाल नुकसानदेह है और इनके लिए केवल प्राथमिक एल्युमीनियम का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और बर्तनों जैसे संवेदनशील उत्पादों में अधिक सीसे और रेडियोधर्मी तत्व वाले एल्युमीनियम कबाड़ सेपर्यावरण और स्वास्थ्य को खतरा रहता है। ऐसे कबाड़ के इस्तेमाल से बिजली के उपकरणों और बिजली पारेषण की लाइनों में सुचालकता और बिजली की हानि होती है। एएआई को लगता है कि कबाड़ पर 2.5 प्रतिशत के मामूली आयात शुल्क से आयात में इजाफा हो रहा है। एल्युमीनियम के अलावा अन्य अलौह धातुओं के कबाड़ और प्राथमिक धातु दोनों के लिए ही बराबर शुल्क लगता है। एल्युमीनियम विनिर्माता प्राथमिक धातु और कबाड़ के बीच शुल्कों में अधिक अंतर झेल रहे हैं। एक ओर जहां कबाड़ पर 2.5 प्रतिशत का मामूली-सा शुल्क लगता है, वहीं दूसरी ओर प्राथमिक एल्युमीनियम पर 7.5 प्रतिशत शुल्क और एलएमई (लंदन मेटल एक्सचेंज) के दामों पर प्रीमियम शामिल रहता है।प्राथमिक एल्युमीनियम और कबाड़ के बीच कुल अंतर 400 से 500 डॉलर प्रति टन रहता है। एएआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसके अलावा गैर-कबाड़ आयात की गलत घोषणा से शुल्क चोरी की संभावना भी रहती है जिसके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने को प्रत्यक्ष रूप से राजस्व की हानि होती है। इसमें कहा गया है कि प्राथमिक एल्युमीनियम क्षमता और घरेलू कबाड़ की पर्याप्त उपलब्धता की बड़ी उपस्थिति के बावजूद भारत का कबाड़ उपभोग 100 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। स्वाभाविक तौर पर भारत में एल्युमीनियम कबाड़ आयात पूरी तरह से गैर-जरूरी है तथा घरेलू एल्युमीनियम उद्योग और देसी कबाड़ की रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहन देने के लिए इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। देश के प्राथमिक एल्युमीनियम उपभोग को कबाड़ आयात के बढ़ते खतरे का सामना करना पड़ रहा है। वित्त वर्ष 19 के दौरान कुल आयात में इसकी हिस्सेदारी 58 प्रतिशत थी जिसके परिणामस्वरूप 2.5 अरब डॉलर मूल्य की विदेशी मुद्रा देश से बाहर गई।अमेरिका और चीन द्वारा एक-दूसरे पर शुल्क लगाए जाने के कारण भी देश के प्राथमिक एल्युमीनियम विनिर्माताओं के लिए जोखिम बढऩा तय है। इसके अलावा चीन ने सुरक्षात्मक कदम उठाते हुए इस वर्ष 15 दिसंबर से कबाड़ आयात पर पांच प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क की घोषणा करके धातु अपशिष्टï और कबाड़ आयात के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। चीन ने जुलाई 2019 से एल्युमीनियम कबाड़ को प्रतिबंधित आयात सूची में रख दिया है और कबाड़ आयात में कमी लाने के लिए कोटे की शुरुआत की है। इसकी योजना वर्ष 2020 तक कबाड़ और अपशिष्ट को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की है।कैलेंडर वर्ष 2019 में जनवरी से मार्च अवधि के दौरान भारत पहले ही चीन को सबसे बड़े कबाड़ आयातक के रूप में पीछे छोड़ चुका है। चीन के अलावा यूरोपीय संघ और अन्य विकसित देश कबाड़ के लिए कड़े नियम लागू कर चुके हैं। नतीजतन अमेरिका इन देशों के बाहर कबाड़ी की बड़ी खेप भेज रहा है जिससे भारत के सामने बड़ा खतरा पैदा हो गया है।