ढाक के तीन पात दलित और उत्तर पूर्व भारत के मुस्लिम अध्यक्ष कांग्रेस नेता पीएल पुनिया और तारिक अनवर तथा पिछड़े मुस्लिम जाति के नेता
ढाक तीन पात - दलित और उत्तरपूर्व भारत के मुस्लिम के दिग्गज कांग्रेस नेता पी.एल पूनियां और तारीक़ अनवर - तथा पिछड़ी मुस्लिम जाती के नेता सामी सुलेमानी - अखिल भारतीय दलित मुस्लिम अधिकार मंच और राष्ट्रीय क़ौमी तंज़ीम की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस - मोदी शाह के उदण्डन्त नीतियों पर रोने आये प्रेस क्लब ऑफ इंडिया नई दिल्ली में । सीएए , एनआरसी, एनआरपी देश के लिए घातक ,समाज के लिये घातक, नया कानून बहुत बड़ी समस्या, जैसे सब बता रहे हैं वैसे यह भी बता रहे हैं। तो भाई समाधान क्या है ? इससे निपटा कैसे जाये ? अब बिल्ली के गले मे घुंघरू कौन बांधे ? महीना से ऊपर हो गया , सीएए , एनआरसी, एनारपी के विरोध में प्रदर्शन धीरे धीरे देश मे आग की लपटों की तरह फैलता जा रहा है - पहले तो भारत का कोई भी आंदोलन पुरुष सम्भाला करते थे , लेकिन मोदीशाह का 6 वर्षों की सरकार ने नया नया कानून बना कर नया भारत बना दिया । अब महिलाएं वह भी मुस्लिम की ! भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिये मुस्लिम पतियों से सुरक्षा के लिये मोदिशाह ने तीन तलाक का कानून क्या बना दिया वह तो अब इतनी सशक्त हो गईं की मोदिशाह के नये सीएए , एनआरसी, एनआरपी कानून का पिछले लगभग एक महीने 10 दिनों से लगातार विरोध में दिल्ली के शाहीनबाग के कालिंदनी कुंज की सड़कें जाम कर के बैठ गईं - इनकी आवाज़ यहां से भारत क्या विश्व मे गूंज गई और अब भारत के हर राज्य में महिलाओं ने ही एनआरसी और एनारपी के विरोध में मोर्चा संभाल रही हैं । चलो यह भी अच्छा ही हुआ कि कम से कम यहां के मनुवादी विचारधारा के पुरुष साशसक की इनके शक्ति अब एहसास होने लगा है।
कम से कम आज विश्व के हर हर कित्ते में भारत की मुस्लिम महिलाओं की शक्ति तो लोग जान गये , लेकिन भारतीय विपक्ष के नेताओं ने इस मुद्दे पर अब तक सिवा प्रेस मीडिया के सामने अपने बयानबाज़ी करने के सिवा और कुछ ठोंस कदम नही उठाए और न् उठाएंगे । इसलिये की अंदर खाने हिन्दुत्व के मुद्दे पर सब एक से दिख रहे हैं - ऊपर से मुस्लिम लीडर के साथ उनके कांधे से कांधा मिला कर चल कर गले से गला मिला कर बे बस रोते हुए देखे जा सकते हैं - जो केवल और केवल एक नाटक सा लग रहा है ।
1977 में जयप्रकाश आंदोलन वह कैसे नेता थे जिन्होंने इंदिरागांधी के विरोध में एक ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि इंदिरा गांधी को अपने प्रधानमंत्री पद इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा था । जब कि आज उस दौर से कहीं चार गुणा भयानक त्रासदी से भारत की जनता झूझ रही है बावजूद इसके भारत की 95% जनता मूकदर्शक है और केवल दलित पिछडो के कुछ नेता मुसलमानो के कंधे पर हाँथ रख कर रो रहे हैं।
एक विडम्बना ही कहें कि जहां मुसलमान खामोशी से प्रदर्शन कर रहे हैं वही दूसरे समुदाय के लोग उनके प्रदर्शन में मिल कर उन्हें बदनाम करने के लिये उग्रप्रदर्शन कर तोड़ फोड़, आगजनी, कर मुसलमानो पर गोलियां स्वयं भी चला रहे है और पुलिस द्वारा भी मरवाया जा रहा है जिसे कम से कम तमाम सोशल मीडिया पर प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट दिखाई दे रहा है फिर भी सरकार मुसलमानो को ही गिरफ्तार कर उन पर ही मुकदमा चला रही है । और कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल केवल गले से गले मिला कर मुस्लमानो के साथ रो रहे है या मीडिया में मोदिशाह सरकार की आलोचना ही कर रहे हैं - न तो अब तक किसी ने सरकार से बर्खास्तगी की मांग की और न और कोई विपक्ष उनसे अब तक इस्तीफे की मांग को ले कर सरवोच्य न्यायालय का दरवाजा खटखटाया । बड़ा ही विचारणीय है ऐसा क्यूं ? जबकि 1977 में जयप्रकाश आंदोलन के समय जितने भी दलित पिछड़े के नेता तथा ब्राह्मण नेता सभी उस समय इंदिरागांधी या कांग्रेस की सरकार की नीतियों के विरोध में सभी एक पलटफार्म पर आ कर भारत की तमाम न्यायप्रणाली को ठप कर दिया था। क्या उस समय भी कांग्रेस सरकार की दमनकारी नीतियों से जनता परीशान हो गई थी या उस समय भी कांग्रेस को समाप्त करने की या इंदिरागांधी को समाप्त करने की साजिश रची गई थी । जबकि उस समय भी ब्राह्मण और बनिया के हांथों में कांग्रेस सरकार की कमान थी, हां यह बात जरूर थी कि उस समय मुसलमानो का सरकार में 20% भागीदारी थी जो कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था। उस समय कम्युनिस्ट मज़बूत विपक्ष थी। दूसरी थी सोशलिस्ट, जिसका उतना न् तो सरकार पर वर्चस्व था न विपक्ष में मज़बूत थी, उस समय जंगसंघ जो केवल और केवल हिंदुत्व का नेतृत्व करती थी। जंगसंघ की कांग्रेस के प्रति नफरत जगज़ाहिर थी, सोशलिस्ट को उस समय जंगसंघ का एक हिस्सा माना जाता था, भारत मे ब्राह्मण सब से कम संख्या में होने के बावजूद हमेशा सत्ता पर काबिज रहे और भारत जो भी राजनीतिक पार्टियां बानी उसका नेतृत्व ब्राह्मणों ने ही किया उस समय भी सबसे बड़ी और मज़बूत विपक्ष का नेतृत्व भी ब्राह्मण के ही हाँथ में था और जब जयप्रकाश आंदोलन खड़ा हुआ तो उसका नेतृत्व भी ब्राह्मण के ही हैं में था 1977 में जो आंदोलन खड़ा हुआ उसका मुख्य कारण क्या रहा ? जनसँख्या नियंत्रण कानून के तहत नसबंदी जो मुसलमानो को गवारा नहीं था, और फिर वही आंदोलन दलितों और पिछड़ों के अधिकार में बदल जाता है फिर उसी समय आरक्षण की बात भी उठ जाती है उस आंदोलन का नेतृत्व ब्राह्मण ही कर रहे थे कही कम्युनिष्ट के रूप में तो कहीं सोशलिष्ट के रूप में वह आंदोलन जब थमा तो 1978 में एक नई राजनीतिक पार्टी, जनता पार्टी के रूप में उभर कर आई जिसमे इंदिरागांधी के सभी नज़दीक रहने वाले बड़े कद्दावर नेताओ मोरारजी देसाई, बहुगुणा, तथा कम्युनिष्ट के बड़े नेता और सोशलिष्ट का ही उस समय नाम बदल कर जनता पार्टी कर दिया गया जिसका एजेंडा था गरीबो को सामान्य अधिकार पिछड़ी जातियों को सम्मान और रोजगार राजनीतिक में हिस्सेदारी, जिसके कारण गरीब पिछड़ा वर्ग उसी समय कांग्रेस कुछ कम्युनिस्ट से टूट कर जनता पार्टी का वोटर बन गया और जनता पार्टी स्तित्त्व में आई तथा जनसंघ पर बैन हो गई तो उसने स्वयं सेवक संघ के नाम से अपना दुसरा रूप धारण कर जन सेवा करने के लिये एक संस्था के रूप में जनता समाज के समक्ष आई , और सत्तासीन जनता पार्टी सरकार के नेतृत्व में भारत के जन सेवा के नाम से बड़ी तेजी से पैर पसारने लगी भारत के हर कित्ते में सरकार की मदद से दलितों और पिछड़ों के बीच जा कर उन्हें हिन्दू होने का एहसास दिला कर उन्हें मुसलमानो को हिदू का शत्रु बता कर जागरूक करने का काम आरम्भ किया वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को मुसलमानो का पक्षधर मुसलमानो की हितैषी पार्टी बता कर दलितों और पिछड़ी जातियों में कांग्रेस से नफरत दिलाने का काम बड़े ही तेज़ी से किया इसके परिणामसरूप लगभग 55 % भारत की जनता को कांग्रेस से नफरत हो गई ।
केवल कुछ ही ब्राह्मण-मनुवादियों को जिन्हें जवाहर लाल नेहरू या इंदिरागांधी शाशनकाल में उन्हें बहुत अधिक तवज्जो नहीं मिला जिसके कारण वैसे लोगों ने इंदिरागांधी परिवार अपनी व्यक्तिगत नफरत को राजनीतिक माहौल बना कर कांग्रेस को ही समाप्त करने का षड्यंत्र ऐसा रचा की परिणामसरूप आज प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रहा है। एनआरसी, एनारपी, जैसे कानून बना कर मोदिशाह भारत सरकार प्राइवेट लिमिटेड ने मानो एसिड फेंक दिया हो जिसके दर्द से कांग्रेस तो चीखने चिल्लाने ही लगी साथ मे बिना इलाज खोजे दलित पिछड़े मुसलमान सब के सब चिल्लाने लगे । समाधान क्या है किसी को पता नहीं,
ऐसा क्यूं हो रहा है ? क्या सचमुच मोदिशाह सरकार प्राइवेट लिमिटेड ने इस नये कानून के तहत हिन्दुराष्ट्र बनाने और दलित पिछड़े और मुसलमानो को गुलाम बनाने की प्रक्रिया आरम्भ की है ? या केवल मुसलमानों में डर पैदा कर उन्हें दबा कर रखने या उन्हें देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया है ।
यदि मोदिशाह सरकार प्राइवेट लिमिटेड की ऐसी कोई नियत नही है या नीति नही है जैसा कि वह बार बार हर मंच से जनता के समक्ष एक ही बात बोल रहे हैं कि इस कानून से भारत किसी भी समुदाय का कोई नुकसान नही है यह नागरिकता देने वाला क़ानून है लेने वाला नही है - तो फिर सवाल उठता है - इस कानून को बनाने की इस समय ऐसी क्या आवश्यकता पड़ी जबकि भारत मे बेरोज़गारी , महंगाई भृष्टाचार, बालात्कार हत्या, दुष्कर्म, डकैती छिंतौरी जैसी आपराधिक घटनाएं इतनी बढ़ गई कि आम जन जीवन भय के साये में जीवन यापन कर रहा है बजाए इसे आर्कजकता जंगल राज को रोकने के लिये कोई कानून बनाते न की ऐसे जनविरोधी कानून की आवश्यकता थी । यह हंगावां करा कर आखिर क्या साबित करना चाहती यह केंद्र की प्राइवेट सरकार ? यदि वाकई भारत की केंद्र सरकार है प्राइवेट लिमिटेड सरकार नही है तो जनहित में इस कानून को वापस ले ले और नहीं तो उस कानून को जनपटल पर रख कर भारतीय मुसलमानों और दलितों तथा पिछड़ों का असमंजसता और डर को दूर कर दे कि इस कानून के तहत भारतीय नागरिकों को किसी भी प्रकार का कोई दस्तावेज़ देने या खोजने की या दिखाने की कोई आवश्यकता नही है । बल्कि भारत के हर राज्य के समाहरणालय यानी डीएम कार्यालय में सभी डीएम को सूचित कर दें कि जिस प्रकार से पहले जनगणना होता आ रहा है उसी प्रकार से जनगण होगा, किसी भी नागरिकों से कोई अलग से दस्तावेज़ नहीं मांगा जाएगा। अब रही बात घुसपैठिये को पकड़ने की बात तो सरकार पहले यह सुनिश्चित करे कि घुसपैठिये किस व्यक्ति को समझ रही है और उसके भारत मे रहने की अवधि क्या होगी ? और घुसपैठिये जो भी रह रहे हैं वह सीमावर्ती क्षेत्रों में आते हैं और अधिकतर उसी क्षेत्र में बसे हुए है । यदि कानून ही बनाना है तो महंगाई , भर्ष्ट्राचार, अपराध्य रोकने लिये बेरोज़गार देने के लिये कोई ठोंस कानून बनाएं । इससे जनता में विश्वास भी बढ़ेगा और भाजपा को मजबूती मेलेगी और भाजपा का सपना पूरा होगा कांग्रेस मुक्त भारत बन जायेगा ।।।।
एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)