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कश्मीरी छात्र की बमुश्किल बची जान

नई दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में उपद्रवियों की आग की दहशत अब तक बरकरार है। इसकी बानगी तीन दिन बाद यानी गुरुवार को सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित इलाके ओल्ड मुस्तफाबाद में देखने को मिली। यहां जान महफूज रखने के लिए तीन दिन से एक मदरसे में छिपे छात्र को शाम के समय पुलिस ने सकुशल निकलवा कर सुरक्षित स्थान पर भेजा। 25 वर्षीय यह कश्मीरी छात्र दिल्ली में सिविल सर्विसेज (आईएएस) की तैयारी (कोचिंग) के लिए आया हुआ है।

दिल्ली हिंसा में खुद की जिंदगी बचाने के लिए तीन दिन दारुल-उलूम (मदरसा) में छिपकर रहने वाले इस कश्मीरी छात्र ने शुक्रवार दोपहर के वक्त आईएएनएस से विशेष बातचीत में खुद की रिहाई का हू-ब-हू मुंह जुबानी जिक्र किया। बकौल रिहा हुए और दंगे में दुश्मनों के बीच से जिंदा निकल आए कश्मीरी छात्र बशारत शैफी के मुताबिक, मैं कश्मीर के बडग़ाम जिले का रहने वाला हूं। मेरे पिता कश्मीर के रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हैं।

परिवार अभी भी कश्मीर में है। कश्मीर में चूंकि इंटरनेट सेवाएं अक्सर बाधित रहती हैं। लिहाजा सालभर पहले मैं कश्मीर से दिल्ली सिविल सर्विसेज की कोचिंग लेने आ गया। एक साल तक दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में रहकर कोचिंग की। उसके बाद करीब तीन महीने से आगे की तैयारी के लिए उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग इलाके में किराये के मकान में रह रहा था।

बेहद समझदारी-सूझबूझ से उत्तर पूर्वी दिल्ली में भडक़ी हिंसा में खुद की जान बचा पाने वाले बशारत ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा, मंगलवार रात करीब दस बजे मैं चांद बाग वाले किराये के मकान में बैठा पढ़ाई कर रहा था। उसी वक्त पड़ोस में रहने वाले हामिद साहब मेरे कमरे पर आए। बोले इलाके में दंगा फैल गया है। बकौल बशारत, जान बचाने के लिए जो कपड़े पहने बैठा था उन्हीं कपड़ों में कमरे का ताला लगा कर भाग खड़ा हुआ।


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