मुजफ़्फरनगर। किसानों के बड़े नेता और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजित सिंह के कोरोना से जंग हार जाने की खबर बृहस्पतिवार को जब किसानों को मिली तो उन्हें बड़ा सदमा लगा। किसान नेता की असमय मौत पर किसान पीडि़त और व्यथित नजर आए। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत समेत पूरे परिवार में उनके निधन से आज गम का माहौल नज़र आया। टिकैत परिवार चौधरी अजित सिंह के साथ अपनी स्मृतियों को याद करके भावुक भी होता रहाभारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों ने दिल्ली में अपना नेता खो दिया। जब 28 जनवरी को किसान आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया तब चौधरी अजित सिंह ने बड़ा हौसला दिया। उन्होंने कहा कि चौधरी साहब का किसानों को बड़ा सहारा था। आंदोलन के बीच-बीच में भी बात करते रहे और हमेशा हौसला अफजाई करते रहे। चौधरी साहब का जाना किसानों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। ऐसा नुकसान, जिसका आकलन भी मुश्किल है।चौधरी अजित सिंह के निधन से आज टिकैत परिवार में भी गम का माहौल नज़र आया, पूरा परिवार बार बार उनके साथ की स्मृति को याद करके भावुक हो रहा था। चौधरी अजित सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत में भले ही कई बार नाइत्तफाकी रही हो लेकिन जब भी कभी किसान पर संकट का सवाल आया तो दोनों परिवार एक साथ कंधे से कन्धा मिलाकर साथ खड़े नज़र आये ,भाकियू युवा के अध्यक्ष गौरव टिकैत ने कहा कि उनके जाने से हम समेत सभी किसान आज अनाथ सा महसूस कर रहे है, पिछली बार जब वे सिसौली आये थे तो गौरव के दोनों जुड़वाँ बेटों रघुवेन्द्र और विशुवेंद्र को गोद में लेकर काफी देर तक खिलाते भी रहे थे। टिकैत परिवार आज उनके साथ अपनी स्मृति को बार बार याद कर भावुक भी हो रहा था। चौ. टिकैत ने कहा कि चौधरी साहब का जीवन हमेशा किसानों से जुड़ा रहा, गांव के लोगों से जुड़ा रहा। उनकी विचारधारा पूर्ण रूप से गांव और गरीब की थी। जीवन भर वे गांव और गरीब के लिए काम करते रहे। दिल्ली में आने वाले गांव के हर आदमी को हर एक किसान को एक अहसास रहता था कि उनका एक घर दिल्ली में भी है। गांव से लोग आकर चौधरी साहब को हर बात बताते थे और चौधरी साहब भी उनकी बात बड़े चाव से सुनते थे। गांव की बात करते थे। जब-जब किसान आंदोलन हुए, उनके बड़ा सहयोग रहा। चौधरी साहब पद पर रहे या न रहे, लेकिन किसानों को उन पर भरोसा था। दिल्ली में रहने वाले किसानों के वकील धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं। चाहें वह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय देवीलाल रहे हों, या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, अराजनैतिक रूप से स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत, चौधरी अजित सिंह के जाने से तो मानों दिल्ली में किसानों का ठिकाना ही खत्म हो गया। किसान के लिए बड़े कष्ट का विषय है, दुखद है। अजित सिंह के निधन की खबर से गहरा सदमा लगा है।
मुजफ़्फरनगर। किसानों के बड़े नेता और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजित सिंह के कोरोना से जंग हार जाने की खबर बृहस्पतिवार को जब किसानों को मिली तो उन्हें बड़ा सदमा लगा। किसान नेता की असमय मौत पर किसान पीडि़त और व्यथित नजर आए। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत समेत पूरे परिवार में उनके निधन से आज गम का माहौल नज़र आया। टिकैत परिवार चौधरी अजित सिंह के साथ अपनी स्मृतियों को याद करके भावुक भी होता रहाभारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों ने दिल्ली में अपना नेता खो दिया। जब 28 जनवरी को किसान आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया तब चौधरी अजित सिंह ने बड़ा हौसला दिया। उन्होंने कहा कि चौधरी साहब का किसानों को बड़ा सहारा था। आंदोलन के बीच-बीच में भी बात करते रहे और हमेशा हौसला अफजाई करते रहे। चौधरी साहब का जाना किसानों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। ऐसा नुकसान, जिसका आकलन भी मुश्किल है।चौधरी अजित सिंह के निधन से आज टिकैत परिवार में भी गम का माहौल नज़र आया, पूरा परिवार बार बार उनके साथ की स्मृति को याद करके भावुक हो रहा था। चौधरी अजित सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत में भले ही कई बार नाइत्तफाकी रही हो लेकिन जब भी कभी किसान पर संकट का सवाल आया तो दोनों परिवार एक साथ कंधे से कन्धा मिलाकर साथ खड़े नज़र आये ,भाकियू युवा के अध्यक्ष गौरव टिकैत ने कहा कि उनके जाने से हम समेत सभी किसान आज अनाथ सा महसूस कर रहे है, पिछली बार जब वे सिसौली आये थे तो गौरव के दोनों जुड़वाँ बेटों रघुवेन्द्र और विशुवेंद्र को गोद में लेकर काफी देर तक खिलाते भी रहे थे। टिकैत परिवार आज उनके साथ अपनी स्मृति को बार बार याद कर भावुक भी हो रहा था। चौ. टिकैत ने कहा कि चौधरी साहब का जीवन हमेशा किसानों से जुड़ा रहा, गांव के लोगों से जुड़ा रहा। उनकी विचारधारा पूर्ण रूप से गांव और गरीब की थी। जीवन भर वे गांव और गरीब के लिए काम करते रहे। दिल्ली में आने वाले गांव के हर आदमी को हर एक किसान को एक अहसास रहता था कि उनका एक घर दिल्ली में भी है। गांव से लोग आकर चौधरी साहब को हर बात बताते थे और चौधरी साहब भी उनकी बात बड़े चाव से सुनते थे। गांव की बात करते थे। जब-जब किसान आंदोलन हुए, उनके बड़ा सहयोग रहा। चौधरी साहब पद पर रहे या न रहे, लेकिन किसानों को उन पर भरोसा था। दिल्ली में रहने वाले किसानों के वकील धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं। चाहें वह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय देवीलाल रहे हों, या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, अराजनैतिक रूप से स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत, चौधरी अजित सिंह के जाने से तो मानों दिल्ली में किसानों का ठिकाना ही खत्म हो गया। किसान के लिए बड़े कष्ट का विषय है, दुखद है। अजित सिंह के निधन की खबर से गहरा सदमा लगा है।