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*यौम-ए-रहमत (#CompassionDay) की एहमियत और फायदे*

12 रबीउल अव्वल की तारीख़ मुसलामानों के लिये बहुत एहमियत रखती है क्यूंकि इसको पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ की यौम-ए-पैदाइश माना जाता है। इसीलियें हम इसे करुणा दिवस (Compassion Day) भी कहते हैं। क्यूंकि अल्लाह ने कहा की हमने आपको सारे जहानों के लिये रहमत बनाकर भेजा (क़ुरआन 21:107)। पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ की सारी ज़िन्दगी इंसानियत के लिये रहमत थी और आपके जीवन का मक़सद ही इस दुनिया में रहमत को आम करना था ताकि ख़ुदा की मख्लूक़ अमन चैन से ज़िन्दगी गुज़ार सके।

हमारे समाज में अलग- अलग नाम से बहुत से दिवस मनाये जाते हैं, जैसे Mother Day, Father Day इसका मतलब ये बिलकुल नहीं होता कि माँ-बाप से प्यार का इज़हार या उनका धन्यवाद सिर्फ उसी दिन किया जा सकता है बल्कि ये दिवस हमें याद दिलाते हैं कि हमारे ज़िन्दगी में इन सब का क्या महत्तव है ताकि हम आगे भी अपने जीवन में इन रिश्तो कि क़द्र कर सकें। कहीं अगर हम भूल जाएं या भटक जाएं तो ये अवसर हमें फिर से याद दिलाएं। इसी तरह हम जानते हैं कि पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ ने इस समाज में एक ज़बरदस्त योगदान दिया जिस से बहुत सी बुराईयां दूर हुई और इंसानियत को एक नई राह मिली। जब हम इस दिवस पर उनके इन कार्यो को याद करते हुए उनके नक़्शेक़दम पर चल कर लोगों के लिये रहमत और रहमत बनेंगे तब ये दिन सारी इंसानियत के रहमत बन जायेगा। हम ख़ुद को अगर पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ का उम्मती कहते हैं तो इसका मतलब ये है कि हम उनके किये हुए कार्यो को आगे बढ़ाएं ये उनसे प्यार और सम्मान का हक़ भी है और पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ का हुक्म भी। पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ ने आख़िरी हज के ख़ुत्बे के दौरान अपने उम्मतियों को कुछ हुक्म दिए उनमें से कुछ थे कि :

1 – कोई इंसान किसी दूसरे इंसान से बड़ा या छोटा नहीं है चाहे वह अरबी हो या ग़ैर अरबी, काला या गोरा, सब बराबर हैं। अल्लाह की नज़र में कर्मो के आधार पर कोई भी बड़ा या छोटा होता है।

2 – आपने कहा की तुम्हारी औरतों के भी तुम्हारे ऊपर अधिकार हैं और ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी है की तुम उनसे रहमत और अच्छाई का बर्ताव करो।

3 – लोगों को उनकी अमानतें वापस दे देना और किसी और की अमानत में ख़यानत मत करना।

4 – तुम हर किसी से इंसाफ़ के साथ व्यवहार करना।

अपनी सारी बाते बताने के बाद आपने कहा की जो भी लोग यहाँ मेरी बात सुन रहे अब ये उनकी ज़िम्मेएदारी है कि इन बातों को सारी दुनिया तक पहुंचा दें इसीलिए इन शिक्षाओं पर अमल करने के साथ हमारा फ़र्ज़ है कि हम आप ﷺ की शिक्षाओं को आम करें। ताकि लोग सुख के साथ अपने जीवन बिता सकें। इसीलिए ये दिन और भी ज़्यादा एहम हो जाता है, क्यूंकि ये हमें याद दिलाता है कि हम जिनके अनुयायी हैं उन्होंने हमें क्या ज़िम्मेदारी दी थी। और ये तो बस कुछ ही बातें थी मुहम्मद ﷺ की पूरी ज़िन्दगी में हमें ऐसी रहमत की बेहिसाब मिसाल मिलेंगी जिसने अन्धकार में डूबे हुए समाज को एक दिशा दी और उसे उजालो में ले गए।

मुहम्मद ﷺ ने जब औरतों के अधिकारों की बात की तो उस समाज के लीडरों ने आपका विरोध किया क्यूंकि वो औरतों को अपनी दासियों की तरह देखते थे। मुहम्मद ﷺ ने ही कहा की जितना तुम अपने लड़को से प्यार करते हो उतना ही लड़कियों से करो। एक बार एक इंसान अपने लड़के से खेल रहा था और उसे गोद में उठाकर खिला रहा था, फिर उसकी लड़की आई और उसने उसे गोद में नहीं लिया बल्कि ऐसे ही प्यार करके भेज दिया मुहम्मद ﷺ ये देख रहे थे, आप ﷺ ने उस आदमी से कहा तुमने अपने लड़के को जैसे प्यार किया वैसे ही तुम्हें अपनी लड़की को भी करना चाहिए था। इसी तरह आप दुखियारे और समाज में छोटा समझे जाने वाले इंसानों के साथ भी रहमत का सुलूक़ करते। मुहम्मद ﷺ के एक साथी थे बिलाल जो की आप ﷺ के साथ आने से पहले ग़ुलाम थे और उस समाज में उन्हें बहुत हीन भावना से देखा जाता था। लेकिन मुहम्मद ﷺ के यहाँ उनका रुतबा बहुत बड़ा था जब पहली बार अज़ान हुई तो आपने हज़रत बिलाल से कहा की आप आज़ान दीजिये और जब हज़रत बिलाल अज़ान देते तो मुहम्मद ﷺ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती। इसी तरह आपके बाक़ी साथी भी जिनमे मक्का के बड़े घरो के लोग भी थे वो भी हज़रत बिलाल की बेपनाह इज़्ज़त करते थे। पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ का यही मामला बच्चो के साथ भी था आमतौर पर बच्चे रोबदार लोगो से दूर भागते और डरते हैं लेकिन मुहम्मद ﷺ से बच्चे आकर लिपट जाया करते थे और खेलते थे। और आप ﷺ का भी ये हाल था की नमाज़ पड़ते वक़्त मुहम्मद ﷺ के नाते और नाती आपकी गोद में बैठ जाते कंधो पर चढ़ जाते और अगर आप सजदे में होते तो ऊपर नहीं उठते कि कहीं बच्चे के चोट ना लग जाए। पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ अपनों के लिए ही नहीं बल्कि दुश्मनों के लिये भी रहमत थे। एक बुढ़िया आपके ऊपर रोज़ाना कूड़ा फेका करती थी। एक दिन वो नहीं आई तो आपको फ़िक्र हुई और उसका पता पूछकर उसके घर गए वो बीमार थी और उसे जब ये पता चला कि मुहम्मद ﷺ उसका हाल पूछने आये हैं तो वो सन्न रह गई और हमेशा के लिये आपकी मानने वाली बन गयी। इसी तरह एक इंसान मस्जिद में आकर पेशाब करने लगा वहां मुहम्मद ﷺ भी बैठे थे। आपके साथियों ने उठकर जब उसे रोकना चाहा तो पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ ने उनसे कहा उसे छोड़ दो और कुछ मत कहो जब उस इंसान ने पेशाब कर लिया तो आपने उसे पास बुलाया और प्यार से समझाया की ये मस्जिद अल्लाह का नाम लेने और उसे याद करने के लिये होती है इसलिए इसे पाक साफ़ रखना चाहिए वो इंसान भी आपके इस व्यवहार से अपना जीवन आपको समर्पित कर बैठा।

जब हम इस दिन मुहम्मद ﷺ की तरह रहमत फैलाने के काम में लग जाएंगे तो इस दुनिया से काफ़ी दुःख दर्द ख़त्म हो जायेंगे। यही ख़ुद को मुहम्मद ﷺ का उम्मती कहने का असली अधिकार है। इस दिन हमें चाहिए की खुदा के बन्दों की भलाई के काम करें और ख़ुद को मुहम्मद ﷺ का उम्मती मांनने वाले इकठ्ठा हों फिर जहाँ भी रहते हों वहां भलाईयाँ फैलाएं। भूकों को खाना खिलाए, मरीज़ों का इलाज कराएं, छात्रों कि शिक्षा का प्रबंध करें जो भी बन सकता है करें बस रहमत फैलाएं। जिस से एक दिन में ही इस दुनिया के बहुत बड़ी हद तक समस्याएं हल हो जाएँगी साथ ही आपको भी इस बात की याददिहानी होगी की हमारी ज़िम्मेदारी असल में तो ये थी। फ़िर पूरी दुनिया भी इस बात को अपनी आखों से देखेगी कि ये है मुहम्मद साहब को मांनने वाले जो इस दुनिया के लिये रेहमत हैं और बाकी दुनियां भी मुहम्मद ﷺ की शिक्षाओं पर अमल करने लगेगी क्यूंकि उनमें बेहद फायदे हैं और सबको शान्ति और सुख पसंद होता है। साथ ही हम इस दिन ये इरादा करें कि अब हम ज़िन्दगी यूँ हीं व्यर्थ नहीं करेंगे बल्कि अपने जीवन का मक़सद वही बनाएंगे जो मुहम्मद ﷺ का था कि करुणा और रहमत को इस दुनिया के हर कोने तक फैला दें ताकि हम फिर से एक समाज बना दें जहाँ खुशहाली और शान्ति हो जैसा पैग़मबर ﷺ ने करके दिखाया था।

अल्लाह रहीम है और उसे रहमत पसंद है और वो रहमत पर वो देता है जो सख़्ती और बर्बरता पर नहीं देता, और नहीं देता है रहमत के अलावा किसी भी कार्य पर। – पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ

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