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देश को अगला दलित प्रधानमंत्री के रूप में क्या कांग्रेस कर सकती है मल्लिका अर्जुन खडगे के नाम का ऐलान?

 


   वरिष्ठ पत्रकार मुस्तकीम मंसूरी की कलम से|


लखनऊ, वर्तमान परिदृश्य में देश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका लगभग समाप्त होती नजर आ रही थी| सड़क से लेकर संसद तक समूचा विपक्ष शून्य नज़र आ रहा था| प्रचंड बहुमत के नशे में मदहोश सत्ता पक्ष के लोग संविधान और लोकतंत्र की अस्मत से खिलवाड़ करते हुए मनमाने फैसले ले रहे थे, ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला मीडिया तंत्र भी सरकार के सुर में सुर मिला कर विपक्ष की आवाज को जनता तक पहुंचाने के बजाय उसे दबाने का काम कर रहा था| ऐसी विषम परिस्थितियों में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा करके सीधे जनता से संवाद करने का जो निर्णय लिया| उसने जहां विपक्षी दलों को ऊर्जा पहुंचाने का काम किया| वही कश्मीर से कन्याकुमारी तक राहुल गांधी के जनता से सीधे संवाद से जहां भाजपा परेशान थी| वही हर जगह एक जनसैलाब राहुल गांधी के साथ राहुल गांधी की पैदल यात्रा में उमड़ रहा था| भाजपा के लिए सबसे परेशान करने वाली बात भाजपा शासित राज्यों में राहुल गांधी को मिलने वाला समर्थन भाजपा और उसके रणनीतिकारों की चिंताएं लगातार बढ़ा रहा था| ऐसे में आज से रायपुर में शुरू हुए तीन दिवसीय कांग्रेस के महा अधिवेशन में हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा यह स्पष्ट कर देना इस बार गांधी परिवार से प्रधानमंत्री पद का कोई दावेदार नहीं है| वही दूसरी ओर बिहार के पूर्णिया में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन की रैली में साफ तौर पर यह कहना की वह (नीतीश कुमार) प्रधानमंत्री की दौड़ में नहीं है| अब कांग्रेस को साफ करना होगा,इस देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा| जो विपक्ष को स्वीकार्य हो अब सवाल यह उठता है| कि भाजपा की उम्मीदों के विपरीत रायपुर अधिवेशन में इस बात का ऐलान होना कि गांधी परिवार से कोई भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं है| जबकि प्रधानमंत्री  के 2024 के चुनाव में राहुल बनाम मोदी का सपना संजोए 85% दलित वोट बैंक को लाभार्थी चेतना के माध्यम से भाजपा के पक्ष में करने का प्रयास कर रहे, प्रधानमंत्री के प्रयासों को असफल करने के लिए अब कांग्रेस की ओर से दलित प्रधानमंत्री के रूप में वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के नाम का ऐलान कर सकती है?अब सवाल यह उठता है कि सन् 1977 जनता पार्टी की सरकार के समय में देश को दलित प्रधानमंत्री के रूप में बाबू जगजीवन राम मिल सकते थे| परंतु उस समय जनसंघ(जो अब बीजेपी) जिसके 98 सांसद जीत कर आए थे, उसके विरोध के कारण देश में दलित प्रधानमंत्री बनते बनते रह गया था| जिसके बाद सामाजिक परिवर्तन के नायक मान्यवर कांशीराम जी ने दलित चेतना को जागृत करने के लिए जो संघर्ष कर दलितों में सत्ता की भूख पैदा करने का जो कार्य किया था| उसी के दम पर मायावती उत्तर प्रदेश में 4 बार मुख्यमंत्री बनी परंतु सामाजिक आंदोलन के जनक मान्यवर कांशीराम के मिशन से जब मायावती भटकी तब सत्ता तो हाथ से गई,और दलित वोट भी मायावती से खिसक गया| गौरतलब है आजादी के बाद से कांग्रेस के पक्ष में दलित पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग जब तक साथ रहा कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में बनी रही| परंतु जैसे ही दलित और अल्पसंख्यक कांग्रेस से अलग हुआ| भाजपा का वर्चस्व बढ़ता गया|भाजपा के स्वर्ण वोट के साथ ही दलित और पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ आया तो समूचा विपक्ष हाशिए पर पहुंच गया| अब ऐसा लगता है| जैसे कांग्रेस और समूचे विपक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हो गया है| यही कारण है,कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले अपने आप को प्रधानमंत्री की दौड़ से अलग कर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का मानो ऐलान कर दिया,वही दूसरी ओर कांग्रेस के महा अधिवेशन के पहले दिन आज रायपुर में भी हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खा द्वारा अधिवेशन में यह कहना कि गांधी परिवार से प्रधानमंत्री की दौड़ में कोई नहीं है| यह इस बात का इशारा है कि कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद का नाम जो घोषित किया जाएगा,वह मलिकार्जुन खड़गे का ही हो सकता है?अगर कांग्रेस 2024 के लिए मल्लिका अर्जुन खड़के को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है| तो समूचे विपक्ष को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में मलिकार्जुन खड़गे का नाम स्वीकार्य होगा| अगर ऐसा होता है,तो अंबेडकर वादियों के साथ ही बाबू जगजीवन राम के समर्थक और सामाजिक परिवर्तन के जनक मान्यवर कांशीराम के सपनों को साकार करने के लिए देश का 85% वर्ग जिसमें दलित,पिछड़ा,और अल्पसंख्यक वर्ग के साथ ही समूचा विपक्ष देश में सामाजिक परिवर्तन का एक नया इतिहास रचेगा|

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