रिपोर्ट /ताहिर अली
गाजियाबाद 26 फरवरी गाजियाबाद विधानसभा उपचुनाव मैं गठबंधन को मिली हर के बाद कांग्रेस प्रदेश आल्हा कमान ने प्रदेश की सभी कमेटी या भंग कर दी उसके बाद से आज तक गाजियाबाद में जिला अध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष की ताजपोसी अभी तक नहीं हो पाई है कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में न्यू वर्तमान अध्यक्ष ही पूरी कार्रवाई देख रहे हैं सभी की नजरे पार्टी आल्हा कमान के फैसले पर टिकी हुई है कि वह इस बार किस जाति के लोगों को अध्यक्ष पदों पर असिन करेंगे क्या इस बार किसी दलित को जिम्मेदारी दी जाएगी दावेदारों में वीर सिंह जाटव का नाम भी चर्चा में आ रहा है इसके अलावा मुस्लिम नेताओं ने भी अपनी दावेदारी की है क्या उनके नाम पर भी पार्टी अपनी सहमति की मो हर लगाएगी प्रदेश आल्हा का मन इस बार मिशन 2027 को ध्यान में रखते हुए ऐसे वर्ग की जिला महानगर पर नियुक्ति करना चाहता है जो की कांग्रेस पार्टी का जन आधार बढ़ा सके अब तक कांग्रेस सामान्य जाति के अलावा ओबीसी जाति के लोगों को ही यह जिम्मेदारी देती आई है पद पाने के लिए दावेदारों ने हाजिरी लगानी शुरू कर दी है जानकारी में आया है कि सभी दावेदार अपनी-अपनी गोटी फिट करने में लगे हुए हैं अब तक जो नाम दावेदारों के निकाल कर सामने आ रहे हैं उनमें जिला अध्यक्ष पद के लिए लोकेश चौधरी और संजीव शर्मा का नाम सामने आया है इसके अलावा महानगर अध्यक्ष पद के लिए पूर्व पार्षद सुनील चौधरी और नरेंद्र चौहान के साथ ही मनोज कौशिक सलीम सैफी भी प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं हालांकि वर्तमान में महानगर अध्यक्ष विजय चौधरी और जिला अध्यक्ष पद पर विनीत त्यागी असिन है इसलिए कयास यही लगाए जा रहे हैं कि इस बार ओबीसी चेहरे में किसी अन्य जाति पर कांग्रेस अपना दाव लगा सकती है ताज्जुब की बात यह है कि अब तक जिला महानगर पद पर किसी दलित या मुस्लिम की ताजपोसी नहीं की गई है जबकि मुस्लिम के अलावा दलित भी कांग्रेस का वोट माना जाता रहा है इसलिए पार्टी के इन जातियों के कार्यकर्ता चाहते हैं की एक बार उन्हें भी मौका मिलना चाहिए कार्यकर्ताओं की यह भी पीड़ा है कि आल्हा कमान हर बार उन जातियों को महत्व देता है जो की कांग्रेस के वोटर भी नहीं है और आज तक काबिज रहे अध्यक्षों ने ऐसा कोई करिश्मा नहीं किया जो वह है अपनी जाति के वोट अधिक संख्य में कांग्रेस प्रत्याशी को दिल पे हो कार्यकर्ता चाहते हैं कि इस बार आला कमान को गंभीरता से विचार करना चाहिए उनका मानना है कि वोट हम देते हैं और संगठन की कमान दूसरे लोगों के हाथों में होती है इसलिए इस बार उन्हें भी मौका मिलना चाहिए अब देखने वाली बात यह होगी की क्य इस बार कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ध्यान रखते हुए दलित मुस्लिम को बनाएंगे या फिर पहले की तरह सिफारिश के बल पर ही अध्यक्षों को थोप दिया जाएगा