उत्तर भारत के पेरियार ललई सिंह यादव का परिनिर्वाण दिवस “समता, सद्भाव“ दिवस के रूप में आयोजित किया गया,
ताहिर अली की रिपोर्ट
गाजियाबाद दिनांक 7 फरवरी 2025 को लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा ज्ञानपीठ केन्द्र 1, स्वरुप पार्क जी0 टी0 रोड साहिबाबाद के प्रांगण में सामाजिक न्याय के अग्रदूत, पाखंड धर्मान्धता के घोर विरोधी, दलितों, पिछड़ों, प्रताड़ितों की आवाज उत्तर भारत के पेरियार ललई सिंह यादव का परिनिर्वाण दिवस “समता, सद्भाव“ दिवस के रूप में आयोजित किया गया,
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट के संस्थापक/अध्यक्ष शिक्षाविद राम दुलार यादव मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम में शामिल रहे, अध्यक्षता चन्द्रबली मौर्य ने किया, आयोजन इंजी0 धीरेन्द्र यादव ने किया, हुकुम सिंह ने देश प्रेम का गीत, राजेन्द्र सिंह ने भजन गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया, कार्यक्रम में शामिल सभी साथियों ने पेरियार ललई सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें स्मरण किया, तथा देश और समाज में नई क्रान्ति पैदा करने वाले उनके विचार को जन-जन में पहुँचाने का संकल्प लिया|
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षाविद राम दुलार यादव समाजवादी चिन्तक ने कहा कि ललई सिंह यादव ने निर्भीकता पूर्वक रुढ़िवाद, धर्मान्धता तथा देश, समाज में व्याप्त कुरीतियों का जमकर विरोध किया, दक्षिण भारत में पेरियार ई0 वी0 रामा स्वामी ने अंग्रेजी में सच्ची रामायण लिखी, और लोगों को झूठ, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा से निजात दिलाने तथा नई
चेतना पैदा करने का काम किया, उनकी अनुमति से पेरियार ललई सिंह यादव ने उत्तर भारत में हिंदी अनुवाद सच्ची रामायण का करके दलितों, पिछड़ों, कमजोर वर्गों को पाखंड से निकलने के लिए उद्वेलित किया, वह सफल लेखक भी थे, लघु कथा , नाटक के माध्यम से लोगों में जागरूकता पैदा की, वह स्वतंत्रता आन्दोलन में काम करते हुए डा0 भीमराव अम्बेदकर के विचार से भी प्रभावित रहे, उनका मानना था कि जब तक समाज में धर्मान्धता है, भय, भ्रम व्याप्त है, तब तक समता, सद्भाव और सामाजिक क्रान्ति अधूरी है, उन्होंने लोगों को निडर रहने का सन्देश देते हुए कहा कि :-
“बलिदान न सिंह का होते सुना, बकरे बलिवेदी पर लाये गये |
बिषधारी को दूध पिलाया गया, केचुए कटिया में फंसाए गये ||
न काटे टेढ़े पादप गये, सीधो पर आरे चलाये गये |
बलवान का बाल न बांका भया, बलहीन सदा तडपाये गये” ||
लोगों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी सारी खेती की जमीन बेच दी, अशोका पुस्तकालय कानपुर में खोलकर लोगों के लिए शिक्षा का द्वार खोला, उन्हें सिपाही की तबाही पुस्तक लिखने और सशस्त्र बल को आजादी के लिए प्रेरित करने के कारण सश्रम जेल में रहना पड़ा, वह अपने उद्देश्य में रिहा होने के बाद लगे रहे, लेकिन आज 21 वीं सदी में देश असमानता, नफ़रत, अन्धविश्वास, अंधश्रद्धा का शिकार है, नकली, झूठ फ़ैलाने वालों की फ़ौज खड़ी हो गयी है, पाखंड
बढ़ता जा रहा है, धर्म की परिभाषा बदल गयी है, उसका स्थान दिखावा, कर्मकाण्ड आडम्बर ने ले लिया है, हम वहां सुख और आनन्द तलाश रहे है, जहाँ दुःख, पीड़ा और दर्द है, तथा हम ठगी के शिकार हो रहे है, इन महापुरुषों ने अपना सर्वस्व त्याग कर हमें जो रास्ता दिखाया है, उस पर चलकर ही हम देश, समाज और व्यक्ति का सर्वांगीण विकास कर सकते है, अफ़सोस है कि राजनैतिक कारणों से जो सम्मान उन्हें मिलना चाहिए था वह नहीं मिला| इनके विचार को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है |कार्यक्रम में प्रमुख रूप से शामिल रहे, राम दुलार यादव, चिंतामणि यादव, चन्द्रबली मौर्य, हुकुम सिंह, हरेन्द्र यादव, मुनीव यादव, एस0 एन0 जायसवाल, चुन्नी लाल चौरसिया, सुरेन्द्र यादव, विजय भाटी एडवोकेट, गुड्डू यादव, राजेन्द्र सिंह, राजपाल यादव, अवधेश यादव, वीर सिंह, अमृतलाल चौरसिया, विजय मिश्र, गुलजार, मंजीत सिंह, हरिकृष्ण, अखिलेश कुमार शुक्ल, राजू, नवीन कुमार आदि|