सरधना (मेरठ) यौमे शहादत शेरे मैसूर हज़रत टीपू की शहादत को याद कर खिराज-ए-अकीदत पेश की 4 मई 1799 का वो दिन था जब शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान ने अपने वतन की हिफाजत करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी।वरिष्ठ समाजसेवी शाहवेज़ अंसारी ने शहीद टीपू सुल्तान को याद करते हुए कहा की अगर टीपू सुल्तान चाहते तो बाकी रजवाड़ों की तरह अंग्रेज़ों से संधि कर उनकी तमाम शर्तों और गुलामी को कुबूल करके अपनी रियासत बचा सकते थे लेकिन उन्होंने इस गुलामी से बेहतर शहादत को तरजीह दी। उस वक्त टीपू सुल्तान का नाम अंग्रेज़ों के लिए खौफ का पैग़ाम था। शायद ही हिंदोस्तान के किसी सुल्तान या राजा का इतना ख़ौफ़ अंग्रेज़ो के दिलो पर रहा होगा। टीपू सुल्तान ने उस वक्त अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी जिस वक्त के हिंदोस्तान के ज़्यादातर राजे रजवाड़े अपनी हुकूमत और वजूद बचाने के लिए अंग्रेज़ों की चौखट पर खड़े थे। जिस दिन टीपू सुल्तान शहीद हुए थे उस दिन ब्रिटेन में जश्न मनाया गया था जिसमें लंदन के नामचीन साहित्यकार रंगकर्मी और कलाकार शामिल हुए थे,और सलीम अंसारी ने कहा की अंग्रेज़ों में सुल्तान ...
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